इंसान बनाना चाहता हूँ!!
हैरान है दीवाना...
परेशान है जमाना...
की जिंदगी में आखिर..
शमा पर परवाना...
इतना मेहरबान क्यूँ है?
मेहरबान क्यूँ है?
मेहरबान क्यूँ है?
अब तो कुछ इंसान
इंसान से पूछते हैं...
की... अरे ...तू अब तक इंसान क्यूँ है??
हम भी है हैरान..
इनकी अजीब वफाओ से परेशान...
की प्यार के जाम को छोड़कर
इनने, नफरत से सजायी शाम क्यूँ है?...
हमने कुछ प्यार किया...
और किया तो इजहार किया...
पर इस जहीन हरकत के लिए...
लोगों ने हमें, शरीफ और इंसान
दोनों मानने से इनकार किया....
पर बेवफा वो तो न थे.....
ये जमाना ही था बेक्रम, बदहवास...
जो इन्हें कभी अंगूर मिला न था..
तो ये बाग़ को बोंले घास!!??!!
पर अभी आगे, हम और हुए हैरान...
जब देखा दुनिया में, कुछ हुए इंसान...
कुछ ने देखि है, उस बाग़ की तस्वीर...
कुछ ने खाए आम...
और कुछ महान ऐसे हैं, जो कर चुके मधुपान!!
इनसे मिलकर हुई हमें, प्रसन्नता अपार...
की इनके दिल में भी है, थोडा सा तो प्यार....
फिर बैठ गए हम लोग मेज के आर पार...
और होने लगे कहकहे बारम्बार....
पर, थोडी ही देर में, दिल के टुकड़े हुए हज़ार....
जब ज्ञात हुआ की इनको है बस व्यक्ति विशेष से प्यार...
हमने चाह प्यार को, इन्होने चाह यार...
इनके एक ही यार हैं, अपने यार हज़ार!!
मैं तो बस इंसान को इंसा बनाना चाहता हूँ!!
थोडा प्यार दिखाकर इन्हें, नफरत भुलाना चाहता हूँ!!
पल भर के प्यार से, युद्ध की छाप मिटाना चाहता हूँ!!
इंसान को,इंसान का...दुश्मन नहीं...कुत्ता नहीं....
साथी बनाना चाहता हूँ, प्रेमी बनाना चाहता हूँ!!
मैं भी अपने महबूब से, हसरत निभाना चाहता हूँ!!
इंसान की डोली में बस, इंसा बिठाना चाहता हूँ!!
मरने से पहले, अपने महबूब की इक तस्वीर बनाना चाहता हूँ,
आने वाली नस्ल को ये बात दिखाना चाहता हूँ,
की इंसान की औलाद को इंसान होना चाहिए...
इंसान के बाप को इंसान होना चाहिए!!
इंसान की इंसानियत को खुदा बनाना चाहता हूँ!!
सदा के लिए- इंसान को इंसा बनाना चाहता हूँ!!
मैं तो बस इंसान को इंसा बनाना चाहता हूँ!!
Comments
Post a Comment