मैं

मैं
एकांत है मेरा,
मुझमे अकेला!!
बदनाम है जिंदगी,
बदरंग मेला!!
रूदन है, जीवन का
अंतिम क्रंदन!!
निशा में डूबती आशा है,
मेरा अभिनन्दन!!
रौशनी, अँधेरे, हर्षोल्लास
सबमेरे रोग हैं!!
बंद आंखें, दर्द
मेरे अंतिम भोग हैं!!
भावुकता, उत्साह, उन्माद
ये फरेब है!!
जीवन, उल्लास, उत्पादकता
से गुरेब है!!
अँधेरे हैं, रौशनी के
अकेले रस्ते!!
मौत मिलती है मुझे,
जुन्दगी के वास्ते!!
ग़म ही तो सुख को,
ख़ुशी का नाम देता है!!
अकेलापन साथी को
पहचान देता है!!
अर्ल्हादित तन,
किन्तु...पीड़ित मन!!
क्षण-क्षण घुटता जीवन,
क्षीर-सागर बरसते नयन!!
जाता जीवन,.....
छन-छन ...छन-छन ...!!!
सुंदर बीते नृत्य का
होता स्मरण...!!

Comments

  1. Yeah... I remember this. I liked it a lot. More so beacause of its "dhvanyatmakta".

    ReplyDelete

Post a Comment