जीवन का अभिप्राय

अल्हड़ सी ज़िन्दगी में, आनंद का उदगार है,
अब तो सिर्फ बिस्तरों पे पसरा प्यार है....
हर भावना का एक वैज्ञानिक आधार है,
सम्बन्ध सारे केवल समझदार व्यापार हैं...
समृद्धि में इंसान खूब खेला करते हैं,
टुकड़ों पर तो कुत्ते ही बिफर जाते हैं.....
बड़ा खूबसूरत इंसान का इतिहास है,
वक़्त की प्रगति है, इंसान का आघात है...
आज के वक़्त में एक अजीब अनियमितता है,
'खुद' का ज्ञान नहीं, 'खुद' की धारणा से प्यार है....
रूप है बस राज का, अब राज का वो रूप है,
भेड़िये तो क्या, भेड़ें भी उसमे शेर नज़र आती हैं...
आज भी बचे हैं कुछ नैतिक, न्यायसंगत इंसान,
बस इंसान की कीमत लगाना आम है...
आज़ाद हर इंसान है, आनंदमय संसार है,
पर क्या जीवन का बस आनंद ही अभिप्राय है??

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