है बहुत शोर इस ज़माने में ....
कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं ...
उन पहाड़ों के बीच, जहाँ पत्थरों और पेड़ों से टकराकर...
एक ही आवाज कई बार गूंजती हो...
खुद की आवाज जो इस परस्पर अपवाद के शोर में है घुल गई...
उसकी असलियत पहचानना चाहता हूँ मैं....
कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं ....
इस धुंधलके में कुछ दीखता नहीं.....
हाँ, कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं.....
उन समुन्दरों के किनारों पर, जहाँ मीलों पानी की सतह पर दौड़ते हुए....
फिजा भी कुछ ताज़ा हो उठती है ....
इंसान की पहचान, जो इस प्रतिस्पर्धा के वक़्त में है मिट गयी ....
उसके वजूद को तलाशना चाहता हूँ मैं....
कहीं दूर...बोहोत दूर जाना चाहता हूँ मैं....
बहुत कुछ काला ही दीखता है यहाँ....
इसलिए कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं....
पृथ्वी के ध्रुवों पर, जहाँ चारों ओर सिर्फ श्वेत हिम हो...
मानव ह्रदय, जो अनेक कुविचारों के मालिन्य से है ढक गया....
उसके निर्मल स्वरुप को देखना चाहता हूँ मैं ....
कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं.....
अग्नेय और तपित इस मरुभूमि से....
कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं....
मानसरोवर ताल पर, जहाँ से अनेकों नदियों का उदगम होता है....
और जहाँ समस्त संसार की शांति केन्द्रित हो...
मनुष्य के मनुष्य से व्यवहार से आहत आत्मा को ...
मानवता के समीप लाकर जीवनदान देना चाहता हूँ मैं....
कहीं दूर, बोहोत दूर, जाना चाहता हूँ मैं.....
कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं ...
उन पहाड़ों के बीच, जहाँ पत्थरों और पेड़ों से टकराकर...
एक ही आवाज कई बार गूंजती हो...
खुद की आवाज जो इस परस्पर अपवाद के शोर में है घुल गई...
उसकी असलियत पहचानना चाहता हूँ मैं....
कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं ....
इस धुंधलके में कुछ दीखता नहीं.....
हाँ, कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं.....
उन समुन्दरों के किनारों पर, जहाँ मीलों पानी की सतह पर दौड़ते हुए....
फिजा भी कुछ ताज़ा हो उठती है ....
इंसान की पहचान, जो इस प्रतिस्पर्धा के वक़्त में है मिट गयी ....
उसके वजूद को तलाशना चाहता हूँ मैं....
कहीं दूर...बोहोत दूर जाना चाहता हूँ मैं....
बहुत कुछ काला ही दीखता है यहाँ....
इसलिए कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं....
पृथ्वी के ध्रुवों पर, जहाँ चारों ओर सिर्फ श्वेत हिम हो...
मानव ह्रदय, जो अनेक कुविचारों के मालिन्य से है ढक गया....
उसके निर्मल स्वरुप को देखना चाहता हूँ मैं ....
कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं.....
अग्नेय और तपित इस मरुभूमि से....
कहीं दूर जाना चाहता हूँ मैं....
मानसरोवर ताल पर, जहाँ से अनेकों नदियों का उदगम होता है....
और जहाँ समस्त संसार की शांति केन्द्रित हो...
मनुष्य के मनुष्य से व्यवहार से आहत आत्मा को ...
मानवता के समीप लाकर जीवनदान देना चाहता हूँ मैं....
कहीं दूर, बोहोत दूर, जाना चाहता हूँ मैं.....
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