संघर्ष करो! संघर्ष करो!
मानव केहता है मानव से
संघर्ष करो! संघर्ष करो!
जब मूल्य विसर्जित हो जायें,
धूमिल उम्मीदें खो जायें,
जिजीविषा ही जब मर जाये,
मानव केहता है मानव से,
संघर्ष करो! संघर्ष करो!
स्वप्नों में भी जब रहे न बल,
जीवन में हो न कुछ भी निस-छल,
अहंकार का अन्धकार ही,
जब सभी दिशाओं में हो प्रबल,
मानव केहता है मानव से,
तू तज-निरास, नित प्रबल कर -जीवन संघर्ष!!
जीवन एक चलती धारा है,
सफल कभी ना हारा है,
जब आग लगी हो वन में तो,
सब को प्यारा तो किनारा है,
मानव केहता है मानव से,
बल से जीवन का मूल्य बढ़ा,
संघर्ष बढ़ा!! संघर्ष बढ़ा!!
बस रहा यही है जीवन में,
अन्धकार मय दिशाहीन इस विचरण में,
मैं तो केहता हूँ मानव तू,
जाग जरा, विस्मित हो जरा,
संघर्ष तू करता है तो कर,
पर सोच जरा है दिशा किधर!!
मानव केहता है मानव से
संघर्ष करो! संघर्ष करो!
जब मूल्य विसर्जित हो जायें,
धूमिल उम्मीदें खो जायें,
जिजीविषा ही जब मर जाये,
मानव केहता है मानव से,
संघर्ष करो! संघर्ष करो!
स्वप्नों में भी जब रहे न बल,
जीवन में हो न कुछ भी निस-छल,
अहंकार का अन्धकार ही,
जब सभी दिशाओं में हो प्रबल,
मानव केहता है मानव से,
तू तज-निरास, नित प्रबल कर -जीवन संघर्ष!!
जीवन एक चलती धारा है,
सफल कभी ना हारा है,
जब आग लगी हो वन में तो,
सब को प्यारा तो किनारा है,
मानव केहता है मानव से,
बल से जीवन का मूल्य बढ़ा,
संघर्ष बढ़ा!! संघर्ष बढ़ा!!
बस रहा यही है जीवन में,
अन्धकार मय दिशाहीन इस विचरण में,
मैं तो केहता हूँ मानव तू,
जाग जरा, विस्मित हो जरा,
संघर्ष तू करता है तो कर,
पर सोच जरा है दिशा किधर!!
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