जरा सोचिये

इंसान ही इंसान से नाराज क्यूँ है?
जिंदगी भी जिंदगी से खफा क्यूँ है?
क्यूँ है महरूम आधी आबादी -
मुहब्बत से?
सुकून से?
इबादत से?
बिन बात के सब मगरूर क्यूँ हैं?
"स्व" के बोध में ही मधहोश क्यूँ हैं?
क्यूँ बंद हैं सब आँखें -
वैभव की क्षणभंगुरता से?
आत्म शक्तिहीनता से?
अनायास की क्रूरता से?

अन्धकार में ही सब लीन क्यूँ हैं?
सब जान के हम अन्जान क्यूँ हैं?

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