गौरइया

कल शाम को बारामदे से देखा....
नीम की फुनगी पर बैठे एक गौरइया 
लम्बी उड़ान की थकान मिटा रही थी....

कहीं ये वो गौरइया तो नहीं जो बचपन में 
आम के बाग़ में कूदा टहला करती थी...

कुछ ऐसे पुराने चेहरे हैं जिन्हें देखकर 
अपना एक अतीत याद आता है...
जो खुद के बहुत से भुलाये हुए पहलुओं से 
जबरदस्ती ही मुलाकात कराता है...
और सोच में पड़ जाता हूँ मैं जिंदगी की 
हज़ारों अपरिपूर्ण संभावनाओं के बारे में....
हल्की सी मुस्कान, माथे की शिकन, और आँखों की नमी
छुपा तो ले जाते हैं इन्हें....

मैं अचानक ही उठकर कमरे में आ गया 
ये वो गौरइया तो नहीं जो ग्रीष्म की दुपहरी में भी 
हंसी की किलकारियां छुड़ाती थी....
इस गौरइया ने तो रात की नींद में खलल डाली है....

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