कल, यानि इक्कीस फ़रवरी की रात
सीटियाँ बजाती रही थी हवा बहुत देर तक
कल, यानि इक्कीस फ़रवरी की रात ...
कल, यानि इक्कीस फ़रवरी की रात ...
वैसे तो ये हवा फागुन की दस्तक हुआ करती थी
लेकिन अब, न जाने किसकी आहट दिला रही है ...
जेएनयु में कक्षाएँ चुप हैं कन्हैया के सेडिशन से,
सोनी सोरी की आवाज़ रुकी है तेज़ाब के रिएक्शन से,
दिल्ली की सड़कें राष्ट्र भक्तों के नारों से चुप हैं,
हरयाणा का हवन कुंड
पंचायती पैखानों की अशांति को जलाने
और आसमान से टपकाए मुख्य मंत्री को हटाने
आरक्षण की राजनीति से प्रज्वलित है,
प्रदेशों में फैला प्रतियोगी संघवाद का नारा है
प्रथम सहयोग श्रमिक संघ को चुप करवाना है |
लेकिन अब, न जाने किसकी आहट दिला रही है ...
जेएनयु में कक्षाएँ चुप हैं कन्हैया के सेडिशन से,
सोनी सोरी की आवाज़ रुकी है तेज़ाब के रिएक्शन से,
दिल्ली की सड़कें राष्ट्र भक्तों के नारों से चुप हैं,
हरयाणा का हवन कुंड
पंचायती पैखानों की अशांति को जलाने
और आसमान से टपकाए मुख्य मंत्री को हटाने
आरक्षण की राजनीति से प्रज्वलित है,
प्रदेशों में फैला प्रतियोगी संघवाद का नारा है
प्रथम सहयोग श्रमिक संघ को चुप करवाना है |
इस चुप्पी की खातिर ही रोहिथ ने जान गवां दी
जरा सी चाहने वालों ने क्या कर दी हाहाकार
की शांतिदूतों ने इस शहीद को देशद्रोही दिया करार
बहुत दिनों तक चलता रहा इस बार ...
मौनी अमावस्या के मौन का त्यौहार |
जरा सी चाहने वालों ने क्या कर दी हाहाकार
की शांतिदूतों ने इस शहीद को देशद्रोही दिया करार
बहुत दिनों तक चलता रहा इस बार ...
मौनी अमावस्या के मौन का त्यौहार |
शायद इसी मौन पर चीत्कार रही है हवा
रात बीत गयी
दुपहरी आ गयी
पर ये हवा है की इसकी आवाज़
प्रबलतम होती जा रही ...
रात बीत गयी
दुपहरी आ गयी
पर ये हवा है की इसकी आवाज़
प्रबलतम होती जा रही ...
भूगोलविदों की मानें
तो ये हवा
होली तक शांत हो जाएगी
है तो ये आखिर एक मौसमी हवा
मौसम बदलने पर बंद हो जाएगी
अकेले कितना शोर मचाएगी
ये जरा सी सीटियाँ
मिडिल क्लास के कुम्भकरण को
क्या ख़ाक जगाएँगी...
तो ये हवा
होली तक शांत हो जाएगी
है तो ये आखिर एक मौसमी हवा
मौसम बदलने पर बंद हो जाएगी
अकेले कितना शोर मचाएगी
ये जरा सी सीटियाँ
मिडिल क्लास के कुम्भकरण को
क्या ख़ाक जगाएँगी...
मैं, निरर्थक ही इन सीटियों से क्रांतिमय हो जाता हूँ
फेसबुक पर स्टेटस लगाता हूँ
फिर उन्हें आक्रोशों से बचाता हूँ
फिर मौसमी हवा की तरह चुप हो जाता हूँ
मान लेता हूँ की शांति सिर्फ मेरी ही चुप्पी की मोहताज है
और इंतज़ार में लग जाता हूँ
की कब मेरी इस चुप्पी के खरीदे अच्छे दिन
मेरे भी बटुए का वजन बढ़ाएंगे
और खिड़कियों दरवाजों को बंद करके
मैं भी मान लूँगा की हवा शांत हो गयी है...
फेसबुक पर स्टेटस लगाता हूँ
फिर उन्हें आक्रोशों से बचाता हूँ
फिर मौसमी हवा की तरह चुप हो जाता हूँ
मान लेता हूँ की शांति सिर्फ मेरी ही चुप्पी की मोहताज है
और इंतज़ार में लग जाता हूँ
की कब मेरी इस चुप्पी के खरीदे अच्छे दिन
मेरे भी बटुए का वजन बढ़ाएंगे
और खिड़कियों दरवाजों को बंद करके
मैं भी मान लूँगा की हवा शांत हो गयी है...
लेकिन आज डायरी में यही लिख रहा हूँ
की कल, यानि इक्कीस फ़रवरी की रात
सीटियाँ बजाती रही थी हवा बहुत देर तक ..
की कल, यानि इक्कीस फ़रवरी की रात
सीटियाँ बजाती रही थी हवा बहुत देर तक ..
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