सुना
बहुतों से है मैंने की बस वर्तमान में जियो....
लेकिन
क्या करें,
वर्तमान
को समझने की कोशिश कर बैठता हूँ....
देखता
हूँ...
की
ये तो बस एक मर्तबान है |
मर्तबान....
अतीत
के कुछ पन्नों का
कुछ
रंगीन
कुछ
कोरे
तो
कुछ बेहद उदास.....
इतना
ही नहीं
उम्मीद
और आशाओं के सितारे चमकते हैं इसमें
कहीं
कहीं उनपे निराशा की धूल भी जमी है
तो
कहीं आत्मविश्वास की कमी
बड़े
बड़े सपनों ने तो बहुत हद तक भर ही दिया है इसे
लेकिन
इसकी गर्दन से जरा नीचे से जो अजीब सा सुर्ख लाल दीख रहा है
उसे
पहचानते हो?
अरे
नहीं
ये
रक्त नहीं है
ये
तो केवल जीवटता और कर्मठता है
इसी
ने भर दिया है बाकी का मर्तबान
और
मर्तबान को उसकी पहचान भी यही तो दिलाता है |
किसी
किसी के मर्तबान में...
ये
ऊपर का लाल हिस्सा
जरा
कम हुआ देखा है कभी?
ऐसा
होना भी किसी कैंसर से कम नहीं....
बड़े
से बड़े सपने
बेहतर
से बेहतर उम्मीद
धरी
की धरी रह जाती है
गर
ये कम हो |
और
हाँ दूसरी ओर मैंने ऐसे भी मर्तबान देखे हैं
जहाँ
निराशा के बादलों से ढके हुए
सपनों
के डूबते सितारों ने
उसे
अंधेरों में धकेल ही दिया था
लेकिन
इस सुर्ख लाल जीवटता और कर्मठता ने
उन
निराशा के बादलों को उड़ा दिया
सपनों
के डूबते सितारों को तिनके के सहारे उठा दिया
और
अंत कर दिया उन अंधेरों का जो असफलता ने फैलाये थे |
अपने
मर्तबान में जरा झाँक कर देखो .....
कांच
के आर पार साफ़ नजर आ जाता है
की
क्या अधिक है
और
क्या कम
अगर
गौर से तुमने इस सुर्ख लाल रंग को देख भी लिया
तो
यकीन मनो
इसे
अन्धकार मिटाने में देर नहीं होगी |
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