मैं ख़ुद को मुगालते में ले जाऊँ कैसे
ऐ उम्मीद, मै तेरा चिराग़ जलाऊँ कैसे
मशालों की आग आज भी चिताओं से आ रही
बस्तर से देखो कैसी ये चीत्कार आ रही
इन्साफ के खातिर जो कानून ने दी थीं बंदूकें
देखो वो कैसे बाज़ार के काम आ रहीं
निःस्वार्थ अहिंसा से जो मिली थी आज़ादी
वो निहित स्वार्थ की राजनीति में भस्म हुई
जिस न्याय, स्वतंत्रता, समता की खातिर हमने गणराज्य रचा
वो लोकतंत्र के परदे में पूंजीवाद के नाम हुई
हर चुनाव हर बार कहीं उम्मीद जगाता है
हर बार कोई मोदी ग़रीब का नाम उठाता है
हर नीति क़ानून ग़रीब के हित में लाता है
फ़िर क्या विडंबना की ग़रीब जस-का-तस रह जाता है
ग़रीबी उन्मूलन की हमारी लोकतांत्रिक कोशिशों में कहीं
सामाजिक व्यवस्था में लोक कल्याण का उद्देश्य मर गया
बस सामर्थ्य का समर्थन रह गया
और बेबस बेसहारा की लाचारी उसी का क़सूर बन गया
इस दृश्य के आतंक से मै नज़र चुराऊँ कैसे
ख़ुद भूल के ख़ुद को भूला बताऊँ कैसे
मैं ख़ुद को मुगालते में ले जाऊँ कैसे
ऐ उम्मीद, मै तेरा चिराग़ जलाऊँ कैसे
ऐ उम्मीद, मै तेरा चिराग़ जलाऊँ कैसे
मशालों की आग आज भी चिताओं से आ रही
बस्तर से देखो कैसी ये चीत्कार आ रही
इन्साफ के खातिर जो कानून ने दी थीं बंदूकें
देखो वो कैसे बाज़ार के काम आ रहीं
निःस्वार्थ अहिंसा से जो मिली थी आज़ादी
वो निहित स्वार्थ की राजनीति में भस्म हुई
जिस न्याय, स्वतंत्रता, समता की खातिर हमने गणराज्य रचा
वो लोकतंत्र के परदे में पूंजीवाद के नाम हुई
हर चुनाव हर बार कहीं उम्मीद जगाता है
हर बार कोई मोदी ग़रीब का नाम उठाता है
हर नीति क़ानून ग़रीब के हित में लाता है
फ़िर क्या विडंबना की ग़रीब जस-का-तस रह जाता है
ग़रीबी उन्मूलन की हमारी लोकतांत्रिक कोशिशों में कहीं
सामाजिक व्यवस्था में लोक कल्याण का उद्देश्य मर गया
बस सामर्थ्य का समर्थन रह गया
और बेबस बेसहारा की लाचारी उसी का क़सूर बन गया
इस दृश्य के आतंक से मै नज़र चुराऊँ कैसे
ख़ुद भूल के ख़ुद को भूला बताऊँ कैसे
मैं ख़ुद को मुगालते में ले जाऊँ कैसे
ऐ उम्मीद, मै तेरा चिराग़ जलाऊँ कैसे
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