ए आईने मुझे तुझमे कमियाँ
हज़ार दिखती हैं
क्या करूं तेरे चेहरे में
नाकामियाँ ही ख़ुमार दिखती हैं
माना के दाग गहरे हैं
चाँद के दामन पे भी
लेकिन चाँद तो वो चीज है
की उसे दाग की फ़िक्र नहीं
तू क्यूँ अपने दामन को
मैला करता है
जब तुझमे आईने को झुठलाने
की काबिलियत ही नहीं
एक तरफ तो तुझे चाहिए
दुनिया के रंग-ओ-रौबत का सुख
और वहीँ तुझसे देखा भी नहीं
जाता इंसानियत का दुःख
गर नहीं हिम्मत तुझमे
त्याग करने की, तिरस्कार सहने की
तो क्यूँ देखता है अपने
सपनों में तू औरों का मुख
अहं को ताक़ पर रखकर तपने
की तेरी ख्वाहिश समझ
तुझे ले जाएगी गहरे
अंधेरो में समझ
उन अंधेरों में जहाँ ना
आईना होगा तेरा ना अक्स होगा
उन अंधेरो में जहाँ ना उम्मीद
होगी ना आसरा होगा
सम्मान और अभिज्ञान तो
दूर, वहाँ ना भद्रता होगी ना अधिकार होगा
तेरी मंजिल तो अँधेरे में
ढकी होगी ही सही, तेरा रास्ता भी अंधेरों से भरा होगा
सत्य और इन्साफ की तेरी
ये ख़ोज समझ
तुझे ले जाएगी गहरे
अंधेरो में समझ
तुझे मालूम है की इस
दुनिया की प्रतिद्वंदिता में भी
तू प्रखर होगा, कभी तो तू
प्रवर होगा
कभी तो आ ही जाएगी तेरी
मुट्ठी में ये जमीं
या फिर तेरे हिस्से में
आसमां होगा
तेरे स्वप्नों ने भी
जिनकी नहीं की कल्पना अब तक
ऐसे सितारों से परिपूर्ण
तेरा आशियाँ होगा
तू बस अपनी प्राथमिकताओं
को सीधा करके इन किताबों में पढ़े आदर्शों को छोड़
अपने इस आईने को काबू में
कर
और देख विजय तेरी ही होगी
तेरा सौभाग्य होगा
मत भूल दुनिया भर इसी
वादे पे है मदहोश
इसके सभी एवज किताबों में
पड़े बेहोश
मत भूल इसकी विस्तीर्णता
महासागर को है देती पछाड़
बस देख विस्मृत हो की ये
धरती है बस धन का पहाड़
और तेरे पुरुषत्व से कहता
है ये ललकार
माटी के पुत्र, तू उठ और
कर धरती का बलात्कार
Comments
Post a Comment