यूँ ही कभी कभी

यूँ ही कभी कभी ये निगाहें
इस ज़माने से तंग आ जाती हैं,
बंद आँखों में भी
जिंदगी बदहवास दौड़ती जाती है,
आँखें अभी थकी नहीं होती
या शायद शरीर नहीं खपा होता है अभी,
सपनों की चाहत नहीं होती,
उम्मीद तो अब कभी-कभार ही आती है
तू भी तो साथ नहीं
लेकिन तेरी तस्वीर साथ निभाती है
लबों के हिले बगैर ही
शायद कोई लोरी वो सुनाती है
एक तेरी तस्वीर के सहारे
रातों को नींद आ जाती है
यूँ ही कभी कभी ये निगाहें
इस ज़माने से तंग आ जाती हैं...

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