मैंने कई अधूरे सपने देखें हैं,
हर रोज उन्हें
सोने से पहले
तकिये पर धीरे से लिटाता हूँ,
फिर उनके बीच में सर रख कर
उनमें से किसी एक को चुनकर
उसके अस्तित्व से होता हुआ
उसकी काल्पनिक विडम्बना तक
मैं ख्याली गोते लगाता हूँ...
कभी-कभी इससे नींद आ जाती है मुझे,
तो कभी
जिंदगी के एकान्तरिक रास्तों पे चलते हुए ही
सुबह हो जाती है
कभी-कभी इससे मैं अवसादग्रस्त हो जाता हूँ
मै फिर भी हर रोज इसे दुहराता हूँ
शायद इस बात के प्रायश्चित के लिए
की मैंने सपनों और उम्मीदों का
व्यापार किया है
Comments
Post a Comment