मैं तुम्हारे माथे की शिकन को
शायद दूर न कर
सकूं,
यक़ीनन तुम्हारी
झुर्रियाँ मेरे शब्दों के कारण
सिकुड़ना बंद तो
नहीं करेंगी,
आँखों की
तुम्हारी धीमी रौशनी भी
किसी कविता से
वापस नहीं आनी
घुटनों का दर्द
आज रात भी वैसा ही होगा
हाँ, मगर उम्मीद
है
तुम्हारे तन्हा
दिल में पड़े एकान्त के जाले
मेरी बेपरवाह
बातों से,
जरा गिर तो
जाएंगे
शायद तुम्हारे
किसी ग़म का मै सानी बन जाऊँ
और क्या पता तुम
किसी बात पे ज़रा मुस्करा भी दो,
हो न हो, किसी न
किसी की आँखें
तो नम होंगी जरूर
काव्य अभी इतना
भी पंगु नहीं हुआ
की गमज़दों को भी
रुला न सकें...
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