आज का दिन

आज सुबह जब नींद खुली और बाहर देखा,
नीम के ऊपर परिंदों का एक मेला देखा,
बड़े हर्ष से मैंने सारे गीत सुने,
जो मुझे सुनाने सारी चिड़ियाँ आईं थी
अपनी उड़ान के अंश मुझे वो
भेंट में देने आयीं थी...

बड़े हर्ष से मैंने सारे गीत सुने
बड़े शौक से देखी सारी अटकलियाँ
कभी किसी को उड़ता देखा
किसी को गिरता और संभलता देखा
कोई गुन विदेश के गाता था
कोई रो-रो बात सुनाता था
कोई करतब बड़े दिखाता था
कोई फुनगी चुन के लाता था
बड़े दिनों के बाद मैंने
हर्ष को उड़ता, खिलखिलाता देखा
आज सुबह जब नींद खुली और बाहर देखा

कड़ी धूप की एक किरण से
सारी खुशियाँ जल गयीं
बेहतर पनाह की चाह में,
जो सारी चिड़ियाँ उड़ गयीं,
उल्लास पर्व में मग्न नीम को
जाने किसकी आँख लग गयी

अब नीम बड़ा वीराना है
न सुनने को कोई तराना है
न जीने का कोई बहाना है
अब नीम बड़ा वीराना है

मै भी कब तक साथ निभाता?
नीम के साथ बाट जोहता
तो शायद मै भी नीम बन जाता
मै भी कब तक साथ निभाता?

बारामदे से लौटकर फिर मैंने
जीवन को दीवारों में कैद कर लिया
इस उम्मीद से की शायद
मेरी भावनाएं, मेरे विचार
कंक्रीट छेदना न जानते हों
पर इस उद्यम में मैं हार गया
दिन भर मेरे दिमाग ने
सारा संसार भ्रमण किया
सबकी चिंता की
स्वप्नों में, सबका स्वागत सत्कार किया
अब रात होने आई है
चिर निद्रा ही सुख दाई है
ये आज का दिन कुछ लम्बा था...

Comments