कभी कभी सोचता हूँ
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी .......
शायद उस दिन तुम्हारे यहाँ आ जाने से
इन जहरीली दम घोटती हवाओं में कोई खुशबू होगी
शायद उस दिन चाँद पूरा खिला हुआ होगा
शायद उस दिन आसमान, जो यहाँ अक्सर अब सूना ही दिखता है ,
वो तारों से सजा हुआ होगा
कभी कभी सोचता हूँ
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी ......
शायद उस दिन सड़कों पे
हॉर्न के शोर की जगह
मधुर संगीत बजेगा
शायद उस दिन धूप होगी ही नहीं
और फिर क्या पता की जब खुदा मेहरबान है ही
तो उस दिन बरसात भी हो ?
कभी कभी सोचता हूँ
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी ......
छुट्टी न भी रही उस दिन तो छुट्टी लेनी होगी
आखिर जीवन का इतना बड़ा मुकाम आया होगा
क्या पता फिर कहीं सुकून भी मिल जाये तुम्हारे साथ
देखना होगा की पैरों के नीचे से
कहीं जमीन न खिसक जाये - तुम्हे देखते ही
थोड़ी घबराहट, थोड़ी हैरानी, थोड़ी उलझन तो लाज़मी है
लेकिन उसके गुज़र जाने के बाद का वाकया क्या होगा
ये देखना होगा
कभी कभी सोचता हूँ
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी ......
यूँ तो मैं हर रोज़
घर से दफ्तर और दफ्तर से घर
घड़ी की सुई की तरह
आदतन चला जाता हूँ
लेकिन उस दिन
मेरा घर कहीं होगा
और जाना कहीं और
उस दिन मजबूरियों से तर्क की टकराव होगी
उस दिन मजबूरियों को तर्क से फिर जीतना होगा
तुम तो जानती हो
मेरे लिए ये कितना मुश्किल होगा
उस ग़म का बोझ कितना भारी होगा
लेकिन क्या पता तर्क कोई समाधान ही दे जाए
कभी कभी सोचता हूँ मै
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी ......
मैं चाहता हूँ की तुम्हारे साथ इस शहर को देखूं
ये शहर अब तक मुझे अपना लगा तो नहीं हैं
लेकिन यक़ीनन तुम्हारे साथ कुछ पल यहाँ बिताने से
ये शहर अपना जरूर बन जायेगा
कई शहरों से दिल लगाया है अब तक
उम्मीद है की फिर घर यहीं बस जायेगा
लेकिन इस दौर की शुरुआत का दिन एक होगा
वो की जब तुम मेरे शहर आओगी
और मै कभी कभी सोचता हूँ
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी ......
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी .......
शायद उस दिन तुम्हारे यहाँ आ जाने से
इन जहरीली दम घोटती हवाओं में कोई खुशबू होगी
शायद उस दिन चाँद पूरा खिला हुआ होगा
शायद उस दिन आसमान, जो यहाँ अक्सर अब सूना ही दिखता है ,
वो तारों से सजा हुआ होगा
कभी कभी सोचता हूँ
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी ......
शायद उस दिन सड़कों पे
हॉर्न के शोर की जगह
मधुर संगीत बजेगा
शायद उस दिन धूप होगी ही नहीं
और फिर क्या पता की जब खुदा मेहरबान है ही
तो उस दिन बरसात भी हो ?
कभी कभी सोचता हूँ
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी ......
छुट्टी न भी रही उस दिन तो छुट्टी लेनी होगी
आखिर जीवन का इतना बड़ा मुकाम आया होगा
क्या पता फिर कहीं सुकून भी मिल जाये तुम्हारे साथ
देखना होगा की पैरों के नीचे से
कहीं जमीन न खिसक जाये - तुम्हे देखते ही
थोड़ी घबराहट, थोड़ी हैरानी, थोड़ी उलझन तो लाज़मी है
लेकिन उसके गुज़र जाने के बाद का वाकया क्या होगा
ये देखना होगा
कभी कभी सोचता हूँ
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी ......
यूँ तो मैं हर रोज़
घर से दफ्तर और दफ्तर से घर
घड़ी की सुई की तरह
आदतन चला जाता हूँ
लेकिन उस दिन
मेरा घर कहीं होगा
और जाना कहीं और
उस दिन मजबूरियों से तर्क की टकराव होगी
उस दिन मजबूरियों को तर्क से फिर जीतना होगा
तुम तो जानती हो
मेरे लिए ये कितना मुश्किल होगा
उस ग़म का बोझ कितना भारी होगा
लेकिन क्या पता तर्क कोई समाधान ही दे जाए
कभी कभी सोचता हूँ मै
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी ......
मैं चाहता हूँ की तुम्हारे साथ इस शहर को देखूं
ये शहर अब तक मुझे अपना लगा तो नहीं हैं
लेकिन यक़ीनन तुम्हारे साथ कुछ पल यहाँ बिताने से
ये शहर अपना जरूर बन जायेगा
कई शहरों से दिल लगाया है अब तक
उम्मीद है की फिर घर यहीं बस जायेगा
लेकिन इस दौर की शुरुआत का दिन एक होगा
वो की जब तुम मेरे शहर आओगी
और मै कभी कभी सोचता हूँ
वो दिन कैसा होगा
जब तुम मेरे शहर आओगी ......
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