तुझे देखा तो लगा
तू कोई दुआ है जो न कभी जुबां से निकली
तुझे पहचाना तो जाना
तू सब ख़ताओं की जोड़कर सज़ा निकली
अभी तक दिलों के टूटने में
अक्सर हम कसूरवार होते थे
बड़ी मुद्दतों बाद
वक़्त के बटुए से ये कसर निकली
तुझे देखा तो लगा
तू कोई दुआ है जो न कभी जुबां से निकली
तुझे पहचाना तो जाना
तू सब ख़ताओं की जोड़कर सज़ा निकली
आलम ये देखकर जरूर हस रहा होगा खुदा
तेरे सज़दे में झुककर तेरी रहमत की दुआ निकली
दुआ में मांग ली ख़ुदकुशी ऐसी
की जान है भी अभी और दुआ में जा निकली
तुझे देखा तो लगा
तू कोई दुआ है जो न कभी जुबां से निकली
तुझे पहचाना तो जाना
तू सब ख़ताओं की जोड़कर सज़ा निकली
वक़्त की इस वाक़ये को लिखने में
कोई तो ख़ास स्याही निकली
ग़म की चाबूक चली पहर-दर-पहर
क्या मजाल लेकिन की कहीं कोई सिसकी निकली
तुझे देखा तो लगा
तू कोई दुआ है जो न कभी जुबां से निकली
तुझे पहचाना तो जाना
तू सब ख़ताओं की जोड़कर सज़ा निकली
कहने को तो जुबां से
बेकाबू होकर बातें बहुत निकलीं
इधर उसने मुख़ालिफ़ करार किया
उधर फ़सानों के ज़नाज़े की आवाज़ निकली
तुझे देखा तो लगा
तू कोई दुआ है जो न कभी जुबां से निकली
तुझे पहचाना तो जाना
तू सब ख़ताओं की जोड़कर सज़ा निकली
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1. कसर - Affliction.
2. मुख़ालिफ़ - Enemy.
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