मुनासिब

तुम कितनी बार मेरी तरफ आते हुए रास्तों को मोड़ देती हो
मैं कितनी बार तुम्हारी तरफ बढ़ते हुए कदमों को रोक देता हूँ
शायद अभी तक हम साथ हैं तो सिर्फ उन आंसुओं के कारण
की जिन्हें रोक पाना मेरे लिए मुनासिब न हो पाया
शायद हम अब तक साथ हैं तो सिर्फ इसलिए
की एक दूसरे को छोड़ के जीना मुनासिब न हो पाया

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