अलग

अलग था तुम्हारा इस बार का रूठना
कहीं तुम्हे इस बार
अपनी गलती का एहसास
समय से हो तो चुका था
अलग था फिर तुम्हारा यहाँ मिलने आना
अलग था न मिल कर जानें में भी जरा न गुस्साना
अलग था फिर आखिर मिल पाने पर
तुम्हारा यूँ मुझे खुद से दूर हटाना
अलग और बहुत अभेद थी वो दीवार
जो उस वक़्त खड़ी थी
हम दोनों के बीच
अलग ही था न की तुमने जाने की धमकी दी
और मैंने कहा की हाँ चली जाओ
अलग ही था न की तुम तीसरी बार में उठ ही गयी, जाने के लिए
फिर ये भी तो अलग ही था
की सब कुछ के बावज़ूद
मै एक पल में ही पिघल गया
उठा और तुम्हे रोक लिया
तुम्हारा रुकना शायद अलग नहीं रहा हो
लेकिन अलग था वो रुकने का फ़लसफ़ा
की जिसमें कुछ पल ऐसे भी थे
जिनमें वो अभेद दीवार
अचानक कहीं गायब हो गयी
वो पल अलग थे
उनमें उस दीवार को गायब करने की शक्ति थी


फिर भी वो पल इतने ख़ास नहीं थे
क्यूंकि अचानक ही तो फिर वो दीवार वापस आ गयी थी
आखिर ये दीवार भी तो अलग थी ना

अलग ही था वो हमारा मिलना
की जिसकी आरज़ू में
इतना वक़्त बीता था
वो यूँ ज़रा सी देर का निकला
हालाकिं ये अलग नहीं था की तुमने कहा की तुम्हारी जाने की इक्षा नहीं है
हालाकिं ये अलग नहीं था की मै ये मान नहीं पाया की तुम हालात से मजबूर थी
हालाकिं ये अलग जरूर था
की तुमने अगली सुबह मिलने का वादा किया था

अलग ही था न इस बार के उस वादे का तुम्हें भूल जाना
अलग ही था तुम्हारा मुझे ‘पब्लिक प्लेस’ पे बुलाना
बड़ा अलग था ये एक रात में मेरी ज़िन्दगी का यूँ बदल जाना
ये तो अलग नहीं था की मैंने दीवार पे लिखी बातें पढ़ लीं
ये तो अलग नहीं था की मैंने
उसके हिसाब से अपनी मौत के इन्तेजाम शुरू कर दिए
पर ये जरूर अलग था की मै टूट गया
तुमसे एक आख़िरी बार मिलने की बड़ी अश्रुपूरित गुज़ारिश की
फिर ये अलग तो नहीं की तुम मान गयी
पर ये ज़रूर अलग था की तुम मेरी इस भावात्मक आकांक्षा को
किसी तीसरे की मंजूरी के लिए ले गयी 
ये अलग तो नहीं की वो मंज़ूरी नहीं मिली
पर ये ज़रूर अलग था की तुमने दोबारा मेरी आख़िरी ख्वाहिश को भी मारने की कोशिश की

अलग था लेकिन फिर तुम्हारा मान जाना
किसी से लड़ के यहाँ आना
गुस्से से भर कर मुझसे मिलना
अलग था वो गुस्सा
जैसे मैंने तुम्हारी बसाई हुई ख़ुशहाल दुनिया में आग़ लगाई हो
अलग था मेरे लिए उस गुस्से को देखना
अलग था आख़िरी बार का वो इस तरह का मिलना

यूँ तो कई बार बिछड़ चुका हूँ कई अजीज़ों से
पर क्या अलग था ये बिछड़ना
की मै इस कदर ज़िन्दगी में टूटा न था
किसी के क़दमों में यूँ बैठ कर फूटा न था
अलग थी ये बात की उन पलों में
तुम्हारे क़दमों में बैठ कर
मै तुमसे ही दुआ कर रहा था
तुम ख़ुदा थी
मै तुम्हे मांग रहा था

अलग था वो तुम्हारा मुझे चुप कराना
अलग थी ये बात की तुम
अब भी
आज भी
अचंभित ही थी
मेरे प्यार पर
अलग थी ये बात मेरे लिए भी
की क्या आज तक
तुम्हे यकीं ही नहीं हो सका था

मैंने फिर तुमसे गले लगने की दरखास्त की थी
तुम मान गयी
हम गले लगे
ये तो अलग नहीं था
लेकिन अलग था की तुम्हारी धडकनें मुझसे कुछ कह रहीं थी
तुम्हारा जिस्म मुझसे छूटना नहीं चाहता था
बल्कि शायद कहीं वो भी मेरी ही तरह
खुद को फ़ना कर देना चाहता था
अपने माशूक़ में संविलीन हो जाना चाहता था
वो धडकनों का मिलना
वो हाथों की बेचैनी
वो जिस्म के हर कोने की तुम तक पहुँचने की कोशिश
वो आग़
जो हम दोनों में बराबर लगी थी
वो अलग थी
उस आग़ में ताक़त थी
किसी भी दीवार को ख़ाक करने की

अलग था उसके बाद का सिलसिला
जिसमें वो दीवार पल पल में टूट रही थी
लेकिन फिर
फिर तुम्हें किसी ने कहीं चले जाने के लिए मजबूर कर दिया
फिर तुम किसी हालात से शायद मज़बूर हो गयी
फिर तुम अचानक उठी और जाने लगी
अलग था मेरे लिए यूँ तुम्हारा ऐसे वक़्त में चले जाना
अलग थी ये बात की तुम इसे होने दे रही थी
लेकिन अभी
बस अभी ही तो मेरी दुनिया ख़तम हुई थी
माना की मैंने अभी ही अपने ख़ुदा से दुआ मांगी थी
लेकिन दुआ इतनी जल्दी क़ुबूल हो जाए
ये जरूरी तो नहीं
क़ुबूल हो भी कभी ये भी तो जरूरी नहीं
आखिर ख़ुदा की भी तो मजबूरियां होंगी

पर अलग था
तुम जा रही थी
ऐसे वक़्त में
अचानक
लेकिन मैंने अब तक की हर बात को महसूस किया था
मैंने तुम्हे हर बार की तरह
रोकने की नाकाम कोशिश जरूर की
लेकिन अलग थी ये बात की
अब मुझे शायद तुम्हे रोकने का कोई हक़ हासिल नहीं था

अलग था फिर भी
तुम्हारे जाने के पहले
हमारे बीच का प्यार
ऐसे की जैसे कभी कुछ गड़बड़ हुई ही नहीं
ऐसे की जैसे कुछ गड़बड़ अभी भी नहीं था
बहुत अलग था वो तुम्हारे साथ ‘टी-पॉइंट’ तक चल के जाने में दो बार का हसना
मुझे ऐसा लगा की जैसे पहली बार हँसा हूँ
य शायद मर चुका था, जी गया हूँ
तुमने ऐसा कुछ भी तो नहीं कहा था की जिससे उम्मीद मिल सकती
लेकिन फिर भी किसी अनकही बात पे शायद कोई उम्मीद फिर जगी थी
लेकिन कहाँ मेरी ज़िन्दगी में कुछ आसान लिखा है
मौत का वो सिलसिला अभी थमा नहीं था

तुम्हारे जाने के बाद सोच कर देखा तो लगा
की मैं शायद तुम्हारे साफ़ शब्दों पे न जाकर
तुम्हारी धडकनों को सुनकर
फिर किसी फ़िज़ूल उम्मीद को पालने की गलती कर रहा हूँ
मैंने अपने अन्दर के
निर्णयकर्ता को पुकारा
दीवार पर लिखी बातें पढ़ कर सुनाई
उसने तुमसे बात की
नतीज़ा एक अनचाहे निर्णय का निकला
यहाँ तक कुछ भी अलग या अजूबा नहीं था
इस निर्णयकर्ता ने
बहुत बार ऐसे निर्णय लिए हैं
बहुत बार इसके सामने मेरे दिल ने शस्त्र त्यागे हैं
लेकिन
अलग था
की इस बार
मेरे दिल ने मृत्यु के पहले की एक आख़िरी ख्वाहिश मांगी
उस आख़िरी ख्वाहिश में
उसने फिर एक दुआ डाली
शायद तुम तक वो दुआ पहुँच तो गयी
तुमने कुछ कहा
जिससे निर्णयकर्ता के निर्णय का आधार हिला
और उसने एक मौका और दे दिया
कुछ वक़्त दे दिया

इस वक़्त में अब तक हम एक बार मिले हैं
साथ बैठे हैं
चाय और सुट्टे के साथ ठण्ड की रात में हसे हैं
तुम्हारे साथ उस दिन का मिलना अलग था
दीवारों के बगैर का वो मिलना अलग था
तुम्हारा मुझे उस तरह से देखना अलग था
की जैसे तुम ये समझ चुकी हो की मै तुम्हारा हूँ
सिर्फ तुम्हारा
लेकिन तुम्हारी बातों में
अब भी वही दो राहें थी
अब भी मुझे कभी कभी उम्मीद के फ़िज़ूल होने की बात याद आ रही थी
लेकिन फिर हर बार मैं हम दोनों को वो मौका दे दे रहा था जिसकी मैंने खुद दुआ की थी
निर्णयकर्ता  अचानक कुछ बातों को लिखने लग जाता था
मई उसकी नोटबुक बंद कर देता
उसने ये वक़्त दिया था तो अब इस वक़्त में कोई हिसाब मुझे मंजूर नहीं था
इस वक़्त में मेरा दिल निर्णयकर्ता को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था
अलग था ****** इस बार का तुमसे मिलकर लौटना
कहीं किसी उम्मीद का चिराग अब भी शायद जल ही रहा था
शायद अब भी मुझे मेरी दुवाओं पे और मेरे खुदा पे
कुछ यकीं बाकि रह गया था

तुम पूछती हो अलग क्या है?
हर पल ही अलग है
तुम अलग हो
मई अलग हूँ
हम अलग हैं
हमारा साथ अलग है
ये कहानी अलग है
इसका नसीब अलग है
मैंने भी इसे कई बार
जीवन की नियमित घटना चक्रों से
तुलना करने की गलती की है
लेकिन ये अलग है ******
बहुत अलग


Comments