ख़ूबसूरत अंत

शायद तुम्हें मेरी याद आने में थोड़ी देर हो गयी जानां
वैसे भी ये याद जो एक पल को ही आई है
एक पल में ही चली जाएगी
तुम फिर व्यस्त हो जाओगी उन कामों में
जिनकी वजह से तुम्हे मेरी याद इतने दिनों तक नहीं आयी

अब मेरी सब उम्मीदें ख़ाक हो चुकी हैं
मेरा दिल अब हार गया
मेरी सब दुआएं बेअसर रह गयीं
शायद ख़ुदाओं में अब वो ताकत नहीं रही
या शायद ख़ुदाओं की मंशा बदल गयी
तुम भी तो ख़ुदा थी
शायद तुम ही एक ख़ुदा थी
खैर ये अच्छा है की तुमने आखिर सब कुछ साफ़ कर दिया
सब कुछ जब इतना साफ़ हो ही चुका है
तो अब मै न जाने किस बात पे
और क्यूँ
खुद को धोखे में डाल रहा हूँ
न जाने क्या सोच कर
एक पूरा 24 घंटे का वक़्त माँगा था तुमसे
जैसे न जाने उससे क्या हो जायेगा
आखिर तुम्हारे साथ 24 ऐसे घंटे बिताकर भी क्या ही मिलेगा
जिसमें तुम्हे हमसे कोई मुहब्बत ही नहीं

इसलिए अपनी वो ख्वाहिश
वापस ले रहा हूँ
तुम्हे ये वक़्त मुझे देने की
कोई जरूरत नहीं
मुझे अब तुम्हारे इस वक़्त की
कोई जरूरत नहीं
हमें फिर कभी मिलने की
कोई जरूरत नहीं
हमें अब बात करने की
कोई जरूरत नहीं
देखो आखिर आ ही गया न
अंत
जिससे डरते थे उससे बहुत बहुत पहले
किसी तीसरी ताकत से नहीं
बल्कि खुद से ही
तुम करो या मैं
हमारे बीच के इस ‘हम’ की हत्या
आखिर ख़ुदकुशी ही तो है
चलो अब कह ही देते हैं इसे
ख़ूबसूरत अंत

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