मैं जानता हूँ

मैं जानता हूँ
तू किसी किनारे की अब मुन्तज़िर नहीं,
तू चाहे भी तो अब
किसी और किनारे पे रुक सकती नहीं,
शायद तुझे बस कुछ पल के हमसफ़र की जरूरत है,
शायद मुझे बस कुछ पल के सहारे की ही बस जरूरत है,
अब जो जरूरतों से ही बनते और चलते हैं रिश्ते....
शायद मुझे तुम्हारी कुछ जरूरतों की ही बस जरूरत है
मैं दुआ करता हूँ ये कुछ कुछ पलों की जरूरतों का सिलसिला
कुछ भी करके ता-ज़िन्दगी चलता रहे...
मैं तेरी मुस्कुराहटों का कारण बनता रहूँ
तेरा किनारा न होने का मेरा दर्द ताज़ा रहे
लेकिन मैं अपनी दुआओं का असर जानता हूँ
कहीं न कहीं इस सफ़र का मुकाम जानता हूँ

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