सबसे मिलते हैं दिल खोलकर लेकिन अब आईने से डर लगता है
तेरे जाने के बाद मेरी हँसी में, छुपी अश्कों का वर्क लगता है
यूँ तो बदला मेरी गुफ़्तुगूं में कुछ भी नहीं लेकिन
शब्दों को जुबां तक लाने में बड़ा बल लगता है
तेरी बस दिल्लगी की ख़ातिर सारे ग़म उठा डाले थे
अब कोई इश्क़ भी कर ले तो कम लगता है
तेरे जाने के बाद बदला तो कुछ नहीं लेकिन
लोग कहते हैं तू प्रतीक कम लगता है...
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