किसी से कुछ भी कहने को अब जी नहीं करता
कहीं किसी महफ़िल में शरीक होने का जी नहीं करता
सुकून हो कुछ पलों का तो बीती यादों को देख लेता हूँ
नई यादें बनाने का तो अब जी नहीं करता
किसी से कुछ भी कहने को अब जी नहीं करता
कहीं किसी महफ़िल में शरीक होने का जी नहीं करता
सुकून हो कुछ पलों का तो बीती यादों को देख लेता हूँ
नई यादें बनाने का तो अब जी नहीं करता
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