मैं तूफानों के मध्य खड़ा
एक अडिग चट्टान हूँ
मैं वक़्त के व्यंग पर कर रहा
भयंकर अट्टाहास हूँ
मैं अपने आप को देता
अपनी स्वयं पहचान हूँ
मैं अटल हूँ
मैं अचल हूँ
मैं प्रबल हूँ
मैं रच रहा अपने हाथों से
अपनी तक़दीर कमाल हूँ
मैं रखता अपने नियंत्रण में
अपने सभी काल हूँ
मैं अपनी धरती का पुत्र
मैं अपनों की ढाल हूँ
मैं अंधेरों को चीरता
दैदीप्यमान मशाल हूँ
मैं ज़मीन से उठ खड़ा हुआ हूँ
मैं गुदड़ी का लाल हूँ
मैं चुनौतियों को आमंत्रित करता,
आक्षेपों पर प्रत्यावार हूँ
मैं तूफानों के मध्य खड़ा
एक अडिग चट्टान हूँ
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