आज दिल फ़िर रोया है

आज दिल फ़िर रोया है
बेवजह जज्बातों की, नासुलझ उलझनों में,
फ़िज़ूल खोया है
आज दिल फ़िर रोया है
तेरी नासमझ चालाकियों की खताओं पर
उम्मीद हार, मायूस सोया है
आज दिल फिर रोया है
आज फ़िर कहीं
किसी कोशिश की इम्तेहां हो गयी
आज फिर
किसी के हाथों मेरा कत्ल होया है
आज दिल फिर रोया है
लेकिन मैं तुझे इल्ज़ाम नहीं देता
किसी की खताओं पर
किसी को कोई बद्दुआ नहीं देता
मेरे ही गुनाहों का ये फ़ल निकला है
किसी पे ढाये दर्दों का आज कर्ज़ निकला है
दुआ करता हूँ कि अब और न हो
ये निहायत शादीद तजुर्बा
ये तस्कवीशनाक सूरत-ए-हाल
अब फुसलाया जाता नहीं
और आज दिल फिर रोया है

Comments