तम्मनाओं को कुछ यूं बदलते देखा है हमने
कल जिसके लिए ज़माने से लड़ने को थे तैयार हम
आज उसको शायद अकारण ही ठुकरा दिया हमने
और वो जिसे ज़माने का दिलासा दे दिया था एक मोड़ पर
आज गर दिख जाए तो ये दौर-ए-ज़माना क्या चीज़ है
तम्मनाओं को कुछ यूं बदलते देखा है हमने
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