रस्साकशी

वक़्त के साथ चल रही है मेरी रस्साकशी
वो कभी मुझे खींचता है तो कभी मैं इसे
कभी मेरे पाँव लड़खड़ाते है
तो मैं अंधेरों की तरफ़ खिंचा चला जाता हूँ
कभी जो संभल कर ज़ोर लगाया
तो नई रौशनी के द्वार खुलते हैं
तमन्ना है, कोशिश है, आशा है यही
की खेल खत्म होने की सीटी जब बजे
तो मैं रौशनी में रहूँ, संभला हुआ

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