चाँद मुझसे सवाल कर रहा है
मेरी मायूसी का कारण पूछ रहा है
मैं चाँद को क्या जवाब दूँ
क्या कहूँ
मैं जिस मुहब्बत का बरसों से इंतज़ार करता था
मैंने खुद ही उसे नकार दिया है
कि मैं अब किसी के प्यार के क़ाबिल रहा ही नहीं
चाँद भी तो ये सुनकर धिक्कारेगा मुझे
मेरी उन बातों को
जो मैं इससे
उस तक पहुँचाने को कहता था
उनकी याद दिलाकर और कोसेगा मुझे
मैं अपनी बेबसी से बदहवास भी हूँ
और उस पर उठते सवालों से परेशान भी
और ये चाँद है कि मुझसे सवाल कर रहा है
शायद अमावस को सुकून मिले
लेकिन अंधेरा भी तो
जकड़ने की कोशिश में लगा रहता है
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