सोचता हूँ तो

सोचता हूँ
तो खुद पे झुंझला जाता हूँ
ये क्या आदत है
बेवजह कोशिश करने की
खुद को शर्मसार करने की
हर बार क्यों मैं
बस यहीं तक सोच पाता हूँ
की बात बन गयी
तो बात कैसी खूबसूरत होगी
क्यों मैं ये नहीं सोच पाता
की बात नहीं बनी
तो कितनी बेहूदगी होगी
आख़िर मेरी कहानी में
मुझे क्यों इतनी सारी
बेअसर दुवाओं का कसर रखना है
सोचता हूँ
तो खुद पे झुंझला जाता हूँ

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