कब मैंने कुछ पाने की ख्वाहिश की थी
कब तुझसे कहा कि तू बस मेरी ही थी
मैं तो बस आज की लहरों का साहिल खोज रहा था
तू और कोई लहर बन जाये इसकी क्या जरूरत थी
कब मैंने कुछ पाने की ख्वाहिश की थी
कब तुझसे कहा कि तू बस मेरी ही थी
मैं तो बस आज की लहरों का साहिल खोज रहा था
तू और कोई लहर बन जाये इसकी क्या जरूरत थी
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