सोशल मीडिया

सोशल मीडिया पे
हर तस्वीर को मिल रहीं हैं
सैकड़ों तालियाँ
और उड़ रहे हैं हम
ये सोच
की ये हमारे
चाहने वाले हैं
और इस मुग़ालते में
इतराते हैं हम
सारा दिन
फिर रात को तकिए पे सर रख कर
कभी एक पल को ये खयाल आ जाता है
की असल जीवन में कोई सच्चा साथी भी है क्या
तालियाँ तो हैं, लेकिन थामने को कोई हाथ है क्या
अचानक ऐसे सवालों से हम घबरा जाते हैं
फिर फ़ोन उठा लेते हैं
और वहीं तालियों की छांव में
तब तक बैठे रहते हैं
जब तक नींद न आ जाए
सुबह आँख खुली तो फिर वही तलाश
काश की हम समझ पाते
असली संबंधों के महत्व को
सोशल मीडिया की तालियों से परे
एक असल जीवन को
जहाँ सिर्फ तालियां नहीं होती
जहां जीते जागते संबंध होते हैं
ऊंचे नीचे रास्तों से जाते
सुख दुख देते निभाते
मानव के मानव से संबंध
दिलों के दिलों से रिश्ते

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