सोचता हूँ कभी कभी की
मैं भी
खुद्दार बन जाऊँ
लेकिन मुझें
अब भी
इंसानों को खोना
पसंद नहीं
इसलिए
अहं को मार देता हूँ
तेरे साथ की ख़ातिर
लेकिन डरता भी हूँ
कि किसी दिन
ख़ुद्दारी जाग न जाये
क्योंकि गर मैंने सम्मानजनक दूरियां बनाईं
तो फ़िर सम्मान ही होगा
संवाद नहीं
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