उम्मीद

यूँ तो बालकनी में मेरी
हर रोज़ कई कबूतर आते हैं
मेरे मित्र हैं
मुझसे संदेश ले जाने को पूछते हैं
और यूँ ही कभी अगर
आसमान में घनघोर घटाएं छा जाएं तो
अम्बर भी पूछता है
कोई है जिसकी ख़ातिर तू मुझे मेघदूत बना दे
और दिल है
की कहने को इतना कुछ है
लेकिन मैं हर बार इन्हें
लौटा देता हूँ
आखिर ख़त भेजने को
कोई नाम भी तो चाहिए
बस एक ये काव्य है
जो मैं ब्रह्मांड में छोड़ देता हूँ
इस उम्मीद से
की तुझे इसकी झनकार सुनाई दे

Comments