तुग़लक़

दिल्ली के सुल्तान
मुहम्मद बीन तुग़लक़
के तीन कारनामे सबको याद रहते हैं
हम अकबर के दीन-ए-इलाही को भूल जाते हैं
लेकिन तुग़लक़ का सिक्का, दौलताबाद और
तुग़लकी फौज की कूच हमें याद रहती है
इतिहासकारों का कहना है कि तुग़लक़
अपने समय से पहले पैदा होने वाला एक राजमर्मज्ञ था
लेकिन इतिहासकारों की कौन सुनता है
एक आम विद्यार्थी के लिए
तुग़लक़ हँसी का पात्र है
बस
मुझे लगता है
मैं अपने इश्क़ की दुनिया का तुग़लक़ हूँ
समय से पहले, सही काम को करके
गलत होने और कहा जाने वाला
मर्मज्ञ
हँसी का पात्र
समय ही तुग़लक़ की कमज़ोरी थी
समय ही मेरी कमज़ोरी है
मैं अपनी आशिक़ी की दुनिया का
बादशाह सलामत, सुल्तान तुग़लक़ हूँ
लेकिन मैं वो अक़बर नहीं
जिसके दीन-ए-इलाही को ज़माना भूल जाता है

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