यूँ ही
जब बहुत वक़्त के गुज़र जाने पे
तेरी याद आ ही गयी
तो मैंने तुझसे पूछ ही लिया
तेरा हाल
और तुमने भी
किसी रिवाज़ की तरह
बस कह दिया
"सब ठीक"
शायद अब सब ठीक ही रहते हैं
हमेशा
या शायद
कोई किसी से कहता ही नहीं
की क्या ठीक नहीं है
शायद अब सबको ये लगता है
की किसी से कुछ कहके भी
कहाँ कुछ बदलता है
कहाँ किसी से कहके कुछ होता है
कहाँ कोई है जो समझता है
या जिसे फ़र्क़ पड़ता है
तो बस यही नारे लगाते हैं सब
की 'सब ठीक है'
शायद इस उम्मीद में
की जपने से सपने सच होते हैं
लेकिन हकीकत कहाँ बदलती है
रेत में सर डालने से
ठीक है क्या ये सब
क्या सब ठीक हैं?
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