मैं कवि हृदय हूँ

मैं चाहूँ तो अपनी भावुकता पर
क़ाबू पा भी सकता हूँ
लेकिन मैं ये चाहता नहीं
जीवन की ऊंच नीच से गुज़रते हुए
अनेक अद्भुत अनुभूतियां होती हैं
मैं उनके रस को
जी भर के पीना चाहता हूँ
इसलिए
दर्द होता है
तो मैं दर्द में डूब जाता हूँ
अपमान होता है
तो मैं उसे सोख लेता हूँ
निराशा हाथ लगती है
तो मैं निराशा की तह तक जाता हूँ
और हर्ष जो होता है मुझे
तो मैं आसमां में उड़ सा जाता हूँ
शायद मेरी कोई कविता किसी काम की नहीं
लेकिन
मैं कवि हृदय हूँ
मैं जीवन को
पी सा जाता हूँ

Comments