कमबख्त

मैं कमबख्त नहीं हूँ
कमबख्त हैं मुझे न चाहने वाले
कमबख्त वो हैं जिन्हें मेरी पहचान न थी
मैं क्यों कोसूं भला अपनी तक़दीर को
मेरी किस्मत ने ही तो मुझे कोयले से हीरा बनाया है
कमबख्त हैं वो जिन्हें इसकी तवज़्ज़ो नहीं
कमबख्त हैं वो
जिन्हें मेरी उड़ान की आवारगी की कद्र नहीं
कमी है तो उनकी किस्मत में
जिन्हें मैं हासिल हो तो सकता था लेक़िन हुआ नहीं
और वो चाहे जो कहें
मैं क्यूँ कहूं कि मेरी किस्मत में खोट है
मैं खुद को कमबख्त क्यों कहूँ
आख़िर ख़राब किस्मत तो हारने वाले की होती है
और मैंने तो
सारे ख्वाब जीते हैं
सारी यादें जीतीं हैं
तुझसे वो अनकही बातें जीतीं हैं
मुझे तो हासिल है
आशिक़ी की बरक़त
मैं अकेला हूँ सही
लेकिन कमबख्त नहीं हूँ
क्योंकि मेरे ख़ातिर कोई
कहीं ख़्वाब सजाये बैठा है
मेरे भी इंतजार में कोई
दिए जलाए बैठा है

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