मैं जब इनदस की गलियां देखता हूँ
मैं जब आगरा में शाहजहानाबाद देखता हूँ
मैं जब किसी पुराने घंटा घर को देखता हूँ
मैं जब देखता हूँ पुराने मंदिरों और मस्जिदों को
मैं जब किसी पुराने किले में जाता हूँ
मैं जब नीले, गुलाबी से शहरों को देखता हूँ
मैं जब झीलों, फव्वारों के शहरों में उमड़ता हूँ
तो सोचता हूँ
कभी हम ऐसे
शहर बनाते थे
मैं जब देखता हूँ
मीना बाज़ारों की हिन्दू दुकानों को
मैं जब देखता हूँ
चाँदनी चौक के
मारवाणी-मुस्लिम मिलाप और स्नेह को
मैं जब देखता हूँ
बंगला साहब, काली मंदिर और सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल को एक साथ
अपने दफ़्तर की खिड़की से
मैं जब मंदिरों के शहर में मस्ज़िद को
मस्जिदों के शहर में मंदिर को
देखता हूँ
मैं जब देखता हूँ
कितने मुसलमान दर्शनार्थियों को वैष्णव देवी के दर्शन कराते हैं
मैं जब देखता हूँ
कैसे हिन्दू मुसलमां के मक्का का ख़र्च उठाते हैं
मैं ये जब देखता हूँ तो सोचता हूँ
कभी हम ऐसे
शहर बनाते थे
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