ग़म ही आख़िरी मंजिल सही
शुक्र है इश्क़ तो हुआ
वरना हमने देखे हैं हज़ारों आदमी
जो जिये नहीं, न मरे
पर जिन्हें जिंदगी पर ग़म हुआ
हमनें तो संभाला है ऐसे तड़पते दिल को
जो आमादा था शरीर से बाहर आने को
हमने थामी हैं ऐसी धड़कनें
जिनसे गूंजती थी क़ायनात सारी
हमने झेले हैं ऐसे दर्द की न पूछ
हमने क़त्ल किये हैं
खुद अपने चहेते सपनों के
हमनें ऐसे दौर को जिया है जहाँ मौत आसान थी
हमने ऐसी जिंदगी को चुना है जिससे मौत सुखदाई थी
हम आशिकों से ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा न पूछ
हमनें कब सीखा कोई सलीक़ा
हममें कहाँ कोई हुनर जीने का
हमने सारी रुत बिता दी
केवल तज़ुर्बे बटोरने में
तू बस इन तजुर्बों को सुन
ये हुनर, ये फ़लसफ़ा, ये सलीक़ा
तुझे ख़ुद-ब-ख़ुद नज़र आ जाएंगे
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