एक लाल जीप थी मेरी
बचपन में
पोस्ट की गाड़ी
रस्सी के एक सिरे से उसकी बोनट बंधी हुई
और एक सिरा मेरे हाथ में
मैं जहां भी जाता
पोस्ट की वो लाल जीप
मेरा पीछा करते आ जाती
एक ही गाड़ी थी मेरे पास
मैंने न जाने कैसे
किस नई सोच के चलते
उसे एक दिन तोड़ दिया था
मैं हतप्रभ था
की पावदान, सीढ़ी, रेलिंग, दीवार
सब जगह चढ़ने
और उनपर से गिर कर
फिर चलने वाली गाड़ी
आज टूट गयी थी
मेरी पोस्ट वाली लाल जीप टूट गयी थी
गलती मेरी ही थी कुछ
इसलिए उस दिन रोया नहीं था
लेकिन उस जीप को अब तक भूला नहीं हूँ
जिसने मेरी लाख दुपहरी सांझ करी थी
जिसकी डोर पकड़ के मैंने चलना सीखा था
जो मेरे लंबे कदमों से साथ मिलाने
दौड़ा करती थी
मैं बहुत दिनों तक
पीछे मुड़ मुड़ कर देखा करता था
अब भी कभी कभी लग ही जाता है
जैसे पोस्ट की वो लाल जीप
पीछे खड़ी है
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