अब बोल प्रभु

अब बोल प्रभु
है कर्म प्रबल
या भाग्य प्रबल
या ऊपर बैठे आकाओं का
हुंकार प्रबल
अहंकार प्रबल
अब बोल प्रभु
मैंने फल पाए हैं कर्मों के
लेकिन वो लगते भाग्य के फल
क्योंकि जब पूर्ण समर्पण भी
रह जाये अनदेखा अमान्य
कैसे रहे फिर कर्म की धारणा में बल
कैसे रहे इंसान की श्रद्धा अटल
अब बोल प्रभु

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