मेरी आहें तुझ तक पहुंचती तो होंगी
तेरी भी ज़िंदगी मे इनसे ख़लल पड़ती तो होगी
तू भी देखती तो होगी खिड़कियों से बाहर
और देखती भी कुछ नहीं होगी
तू भी ज़िन्दगी से तंग होगी
खोखलेपन से परेशान होगी
कहीं ये तेरी आहें तो नहीं
जो मुझे रुला रहीं हैं
या कहीं ये मेरी आहें तो नहीं
जो तुझे रुला रहीं हैं
और फिर लौट के मेरे पास आ रही हैं
क्या अज़ीब बात है
इस जहां में तू भी है
और मैं भी हूँ
पर न तुझे मैं मिला
न मुझे तू
और इसके सिवा
हमें चाहिए भी कुछ नहीं
ऐसे में गर ख़ुदा से बैर हो
तो बात ग़लत भी तो नहीं
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