हमराज़

वो ही तो
एक
हमराज़
था मेरा
उसके
चले जाने का
दर्द
अंधेरा
घबराहट
अवसाद
आख़िर मैं
किससे बयाँ करूँ?
लिखूँ भी,
तो कविता
किससे कहूँ?
गर मुस्कराऊँ,
तो किसकी बातों पे?
हसूँ,
तो किसके लिए?
जियूँ,
तो किन बातों की ख़ातिर
और कब तक?
इन सवालों के जवाब
उसके सिवा
माँगूं
तो किससे?

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