दीपावली



सज गए हैं बाज़ार सारे
खिड़कियों पे लड़ियाँ लटकने लगीं हैं
हर बालकनी हर छज्जा 
दुल्हन सा सजा है 
कह रहें हैं 
ये आ गई 
दीपावली है 
लेकिन तू नहीं है 
और तेरे न होने से
उत्सव तो है
लेकिन उत्सव की उछाह नहीं है
दिये तो हैं 
लेकिन किसी भी लौ में रौशनी नहीं है
क्या सिर्फ 
कलेंडर की तारीख़
दिये और बत्तियां
बाज़ार और उपहार ही
सब कुछ हैं?
या शायद दीपावली 
चौखट पे खड़ी
तेरा इंतज़ार कर रही है
मेरी तरह

(Picture: by Endlessly Green; https://savitahiremath.com)

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