उस शाम
शहर में एक
सिहरन सी थी
जिस शाम
तेरे चले जाने से
साँस थमी सी थी
एक धुआं
बड़ी तेर तक उठा था
रसोई की रोटियों की खातिर बनी
उस छोटी सी चिमनी से
ज़िन्दगी की आँगन में
जहाँ हम सपनों के पौधों में
उम्मीदों का अर्घ देते थे
उस दिन
जैसे पुराना नीम का पेड़ गिरा हो
उस शाम का अंजाम बोहोत बुरा था
और उस शाम की हवा को
इस बात की ख़बर थी
एक ख़ास अँधेरा छाया था उस रात
बेहद गहरा घुप्प अँधेरा
उस शाम का फ़लसफ़ा आज भी
उस शाम सी
सिहरन दे जाता है
(Picture: https://www.franksonnenbergonline.com)
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