अच्छे दिन

बोहोत दिन बीत जाते हैं
ऐसे ही
बग़ैर किसी कहानी के
न कोई घर आता है
न हम कहीं जाते हैं
न कोई बात बताने की
न कुछ भी लिखने लायक डायरी में
बड़े अज़ीब लगते हैं ये दिन
लगातार आते हैं
तो जिंदगी भी अज़ीब सी लगती है
मन अज़ीब सा हो जाता है
और फ़िर कुछ दिन ऐसे आ जाते हैं
की उन्हें आत्मसात करने के लिए
वक़्त नहीं होता उनमें
न डायरी लिखने का वक़्त
न किसी से कुछ कह पाने की फुरसत
ये दिन भी बड़े अज़ीब ही होते हैं
लगातार आ जाएं तो जिंदगी
अलग तरह से अज़ीब लगती है
शायद
इन दोनों के बीच के से दिन
अच्छे दिन होते हैं
और गर ज़िन्दगी के
चुनिंदा अच्छे दिनों को देखूं
तो लगता है
की शायद अच्छे दिन आते नहीं
बनाने पड़ते हैं

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