गुमसुम सी शाम

दूर से चल के आयी थी
वो गुमसुम सी शाम शायद
सांसें तेज़ थीं
और उसे
कुछ कहने की अजीब सी जल्दी थी
कुछ लफ़्ज़ निकाले उसने हांफते हुए
तेरा ज़िक्र कर रही थी शायद
मैं कुछ सोच में पड़ गया
फिर देखा
तो वो शाम जा चुकी थी

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