तेरा कोई अक्स दिख जाता है किसी में
तो उसे मैं मानने लगता हूँ
कुछ ही वक़्त गुज़ार के लेकिन
फिर मैं ये जानने लगता हूँ
की चाँद दिखता तो है पानी में
लेकिन अक्स में चाँद होता नहीं
फिर भी हर बार दिल यही गलती दोहराता है
तेरे सिवा आख़िर ये प्यार किसी से कहाँ कर पाता है
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