कभी सोचा है?
दिन दिया रोटी जुगाड़ने को
पर खुदा ने रात क्यों दी?
कभी इश्क़ में करवट बदलने को
कभी बातों में चाँद पे चलने को
कभी खाबों को आंखों में भरने को
कभी दिन की कड़वाहट भुलाने को
कभी बस आंखें मूंद मुस्कुराने को
कभी रोटी का बचा कर्ज उतारने को
कभी किसी की याद में अश्क़ बहाने को
कभी ज़िंदगी पे पछताने को
कभी सोचा है?
दिन दिया रोटी जुगाड़ने को
पर खुदा ने रात क्यों दी?
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