मैं इंतेज़ार में हूँ

मैं इंतेज़ार में हूँ
उस सुबह के
जो आगाज़ करे
एक ऐसे दिन का
जिसमें
किसी नाकामयाबी
किसी हार की
कोई कसक न हो
जिसके जिस्म में
किसी टूटे सपने के टुकड़े
चुभते न हों
जिसके भीतर
कोई अपराधबोध
दहकता न हो
जिसकी आंखों में
भूत और वर्तमान का पूरा बोझ
भविष्य पर ही लदा न हो
और ये किसी अनभिज्ञता से पनपी अज्ञानता न हो
बल्कि तथ्यों और तर्कों पर आधारित सत्य हो
मैं उस सुबह के
इंतेज़ार में हूँ
क्योंकि शायद वो ही एक दिन होगा
जब जीवन भर का
"सब बढ़िया" का झूठ
सच होगा

Comments